वाराणसी भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक है। वाराणसी उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है जिसका इतिहास 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है।
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के शहर वाराणसी में कई लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण हैं। इनमें न केवल मंदिर, घाट, बल्कि कई अन्य दर्शनीय स्थल भी शामिल हैं। वाराणसी में लोकप्रिय पर्यटन स्थल का विवरण नीचे दिया गया है।
चूंकि महाकुंभ उत्सव चल रहा है और वाराणसी, प्रयागराज से ज्यादा दूर नहीं है, इसलिए पर्यटक दोनों स्थानों पर जाकर अपनी यात्रा का आनंद ले सकते हैं।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर (स्वर्ण मंदिर)

वाराणसी में लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर है। भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के पश्चिमी तट पर स्थित, वाराणसी दुनिया का सबसे पुराना जीवित शहर और भारत की सांस्कृतिक राजधानी है। इस शहर के हृदय में काशी विश्वनाथ मंदिर अपनी पूरी भव्यता के साथ स्थित है, जिसमें शिव, विश्वेश्वर या विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
सारनाथ (धमेक स्तूप और बौद्ध मंदिर, तिब्बती मंदिर)

सारनाथ (Sarnath) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी ज़िले के मुख्यालय, वाराणसी, से लगभग 10 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित प्रमुख बौद्ध तीर्थस्थल है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” का नाम दिया जाता है और जो बौद्ध मत के प्रचार-प्रसार का आरंभ था। यह स्थान बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है (अन्य तीन हैं: लुम्बिनी, बोधगया और कुशीनगर)। इसके साथ ही सारनाथ क भी महत्व प्राप्त है। जैन ग्रन्थों में इसे ‘सिंहपुर’ कहा गया|
गंगा नदी में नाव की सवारी (नमो घाट, दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, मणिकर्णिका घाट और कई अन्य घाट।)

वाराणसी में कुल 84 से अधिक घाट हैं, जो काशी की संस्कृति और आध्यात्मिकता को दर्शाते हैं। यह घाट केवल स्नान एवं पूजा के लिए ही नहीं बल्कि जीवन और मृत्यु के चक्र का जीवंत दर्शन है। काशी के इन्हीं घाटों पर तुलसीदास, रविदास, कबीर दास, पतंजलि, बाबा कीनाराम, रानी लक्ष्मीबाई, श्री शंकराचार्य, श्री वल्लभाचार्य जैसे अनेक संत महात्माओं ने ज्ञान की प्राप्ति की। कोई यदि काशी के इन घाटों पर शांत ध्यान युक्त मन से बैठे तो उसे भगवान शिव के उपस्थिति का बोध होगा।
दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती (शाम का समय)

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर शाम की गंगा आरती सूर्यास्त के तुरंत बाद शुरू होती है और करीब 45 मिनट तक चलती है. मौसम के हिसाब से आरती का समय बदलता रहता है।
नया विश्वनाथ मंदिर और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU)

महान भगवान शिव की उपस्थिति और शक्ति से विस्मित होने के लिए हर धर्मपरायण व्यक्ति के लिए सबसे अच्छी जगह नया विश्वनाथ मंदिर है। इसकी पवित्रता न केवल भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के केंद्र में स्थित होने के कारण बल्कि इसके साथ बहने वाली पवित्र गंगा नदी के कारण भी बढ़ जाती है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित भव्य नया विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी के सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। इस मंदिर में जाने से भक्त खुद को भगवान के हाथों में सौंप देता है, उनके अधीन होता है और अपने दिल की आवाज़ सुनता है।
संकट मोचन मंदिर

संकटमोचन मंदिर लगभग 40 वर्ष से लोगों के विश्वास का प्रतीक है। लोग यहां पर पूरे देशभर से आते हैं। यहां को लेकर मान्यता है कि मंदिर में मिलने वाली बूटी से टूटी हुई हड्डियां जुड़ जाती हैं। भले ही विज्ञान इसे न मानता हो लेकिन यहां आने वाले लोग वर्षों से इस बात को मानते आ रहे हैं।
दुर्गा मंदिर (दुर्गा कुंड)

भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी विश्व की तीन लोक से न्यारी काशी में मां आद्य शक्ति अदृश्य रूप में दुर्गाकुंड मंदिर में विराजमान हैं। माता का यह सिद्ध मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यह मंदिर आदिकालीन है। वैसे तो हर समय दर्शनार्थियों का आना लगा रहता है लेकिन शारदीय नवरात्र के चौथे दिन यहां मां कुष्मांडा के दर्शन और पूजा के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। काशी के पावन भूमि पर कई देवी मंदिरों का भी बड़ा महात्मय है।
तुलसी मानस मंदिर

वाराणसी में एक और प्रसिद्ध पवित्र स्थल जो शहर के तीर्थयात्रा सर्किट को पूरा करता है, वह है तुलसी मानस मंदिर। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से लगभग 1.5 किमी की दूरी पर स्थित, तुलसी मानस मंदिर वाराणसी में घूमने के लिए शीर्ष धार्मिक स्थलों में गिना जाता है। भगवान राम को समर्पित, मंदिर का निर्माण बनारस के सुरेका परिवार द्वारा किया गया था। मंदिर की पूरी संरचना सफेद संगमरमर से बनी है और इसकी वास्तुकला बहुत सुंदर है।
रामनगर किला और संग्रहालय

तुलसी घाट के सामने गंगा नदी के पूर्वी तट पर स्थित, रामनगर किला वाराणसी में एक आश्चर्यजनक ऐतिहासिक स्मारक है। इसे राजा बलवंत सिंह ने 1750 में मुगल शैली की वास्तुकला के अनुसार बनवाया था। भले ही इस क्षेत्र में राजाओं की व्यवस्था समाप्त हो गई हो, लेकिन वर्तमान महाराजा पेलु भीरू सिंह किले में रहते हैं। यह मुगल और भारतीय स्थापत्य शैली के मिश्रण को दर्शाता है, जिसमें अलंकृत संरचनाएं और जटिल नक्काशी शामिल हैं।
स्वर्वेद महामंदिर धाम

देश की आध्यात्मिक-सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के उमरहां में निर्माणाधीन विशाल साधना केंद्र स्वर्वेद महामंदिर अपने आप में अनोखा है। कारण ये कि यह मंदिर शिल्प और अत्याधुनिक तकनीक के अदभुत सामंजस्य का प्रतीक है।
अगर बात करें इस मंदिर की तो यह वास्तुशिल्प का अद्भुत उदाहरण है। 64 हजार वर्ग फीट में बन रहे सात मंजिला महामंदिर का निर्माण करीब 18 साल पहले शुरू हुआ था। अब स्वर्वेद के दोहे मंदिर में अंकित किए जा रहे हैं। मुख्य गुंबद 125 पंखुड़ियों के विशालकाय कमल पुष्प की तरह है।